Saturday 18 April 2015

चाँद !


चाँद पूरा  हो या अधूरा ,
देख कर साँसे थम जाती हैं।
हाथ बढ़ाते हैं उसे छूने को,
काश हम पहुँच पाते !

किसी की आँखों का नूर हैं ,
और किसी शायर की ग़ज़ल।
हर इंसान की चाहत हैं,
काश उसे हासिल कर पाते !

कभी तन्हा दिल का साथी हैं,
तो कभी भटकते राही की मंज़िल।
हर दीवाने का सपना हैं,
काश उसे अपना पाते !

पर चाँद हैं एक बेजान पत्थर,
जिसकी हर दिशा में हैं सिर्फ अँधेरा।
बस पृथ्वी के चक्कर काटता  रहता  हैं,
इसे आकर्षण कहें, या उसकी मजबूरी ?